अंगिका कविता कौने करतै हमरो इंसाफ
कौने करतै हमरो इंसाफ !
केकरो यहां दिल छै साफ !
जेकरो हम्में खुर पूजैलियै।
देवो से बढ़ी हुजूर बुझलियै।
वहीं उल्टाय क देलकै थाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ!
केकरो यहां दिल छै साफ !
जेकरो हम्में खुर पूजैलियै।
देवो से बढ़ी हुजूर बुझलियै।
वहीं उल्टाय क देलकै थाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ!
मालिके आगू ऐलै बदमाश।
तोड़ी देलकै पीठी प बांस।
तैय्यो मालिकैं कुछ नै कहलकै।
हाथ मिलाय क पीठ सहलैलकै।
बोललां हमरैह देलको गरियाय,
उटकी देलकै माय आरो बाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ !
तोड़ी देलकै पीठी प बांस।
तैय्यो मालिकैं कुछ नै कहलकै।
हाथ मिलाय क पीठ सहलैलकै।
बोललां हमरैह देलको गरियाय,
उटकी देलकै माय आरो बाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ !
पंचो त कीनले गुलाम।
जिन्हैं पैसा हुन्ने सलाम।
मटकी मारथैंउल्टावै खेल।
हम्मी वादी,हम्रैह जेल।
अबे हम्में कहभो केकरा,
सबके माथा उल्लू छाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ!
जिन्हैं पैसा हुन्ने सलाम।
मटकी मारथैंउल्टावै खेल।
हम्मी वादी,हम्रैह जेल।
अबे हम्में कहभो केकरा,
सबके माथा उल्लू छाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ!
जुगुत हमरो टेंगरा पोठिया।
आफत देखी बंद करै टटिया।
झरोखे से सब खेल देखलकै।
तैय्यो नय हमदर्दी राखलकै।
कहलियै जब देलै गवाही,
ह्म्में नय ! गिरतो बड़का चाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ!
आफत देखी बंद करै टटिया।
झरोखे से सब खेल देखलकै।
तैय्यो नय हमदर्दी राखलकै।
कहलियै जब देलै गवाही,
ह्म्में नय ! गिरतो बड़का चाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ!
सब जगह से हारी गेलां।
आग जरी मन मारी गेलां।
जरलो दिल के जरलो आस।
आदमी कहां!जिंदा लाश।
जॉने चैहतै हुरकुच्ची देतै,
चुरतै चढ़ाय घोड़ा के टाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ !
अभय कुमार भारतीआग जरी मन मारी गेलां।
जरलो दिल के जरलो आस।
आदमी कहां!जिंदा लाश।
जॉने चैहतै हुरकुच्ची देतै,
चुरतै चढ़ाय घोड़ा के टाप।
कौने करतै हमरो इंसाफ !
कुशवाहा टोला, लोदीपुर,
भागलपुर(बिहार)-812001.
मो.9430024285.,9798298155.
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें